पायदान पे खड़े
'गण' को
रोटी-कपड़ा-मकान
तो क्या,
मयस्सर नहीं है
टमाटर और प्याज !
और तंत्र के सिर-मौर ,
करके अरबो-खरबों के घोटाले
ठोंक कर सीना
कर रहे हैं राज़ !!
प्रजा है
बिखरी-बिखरी सी,
चोरों,बेईमानों,गुंडों का
संगठित गिरोह बहुत बड़ा है !
गणतंत्र में 'गण'
हासिये पर पडा है,
और 'तंत्र'
सर पे चढा है !
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