शनिवार, 19 मार्च 2011

!!!! बुरा ना मानों होली है !!!!


होली पर मेरे सभी मित्रों-पाठकों को समर्पित है ये 'होलीमय' कविता.
कृपया इसे अन्यथा ना लें,होली का ही एक रंग समझ कर इसे स्वीकार करें.
अपने तमाम वरिष्ठ,हमउम्र,एवं छोटे मित्रों-पाठकों को सादर समर्पित है ये होली का एक रंग मेरी तरफ से.
क्षमा याचना सहित......!
--अशोक पुनमिया
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!!!! बुरा ना मानों होली है !!!!
एक गधा
मेरे सपने में आया,
और उसने मुझे
.ये बतलाया--
कि आपने जो कविता लिखी है
उसे हर ''गधा''
बड़े चाव से
पढ़ रहा है,
और आश्चर्य की बात है
कि खुद को
''गधा'' भी नहीं समझ रहा है !
मैंने कहा-
''गधे'' होते ही ऐसे हैं!!
''गधे'',गधे होते हुए भी
खुद को
''गधा'' नहीं समझ पाते हैं,
और आगे से आगे मेरी कविता
पढ़ते ही चले जाते हैं!!
वो बोला--
हाँ,मैं भी देख रहा हूँ
कि हर ''गधा''
बड़े चाव से
आपकी कविता में
खो रहा है,
और जो आधा ''गधा'' था
वो पूरा,
और जो 'आलरेडी'
पूरा गधा था
होली के दिन वो
डबल ''गधा'' हो रहा है !!!
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!!!! होली पर मेरे सभी मित्रों-पाठकों को शुभकामनाएं !!!!
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