बुधवार, 29 जून 2011

!! शायद कोई इंसान होगा !!


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कह देना आज ये बहुत ही आसान होगा !
कि मुट्ठी में कल मेरी ये जहान होगा !!
खबर नहीं जब यहाँ अगले ही पल की,
कल की बात,बिन नींव का मकान होगा !
.वो शरीके ग़म हो अजनबी के खूब रोया,
कलयुग में बचा वो शायद कोई इंसान होगा !
झूठ ही समझना इसे 'गर मैं कहूँ किसी दिन,
डिगा ना अब तलक कभी मेरा ईमान होगा !
मानता हूँ ऐब है बहुत मेरी शायरी में ,मगर
कुछ तो मेरा भी अलग अंदाज़े बयाँ होगा !
एक 'अन्ना-बाबा' काफी नहीं बेईमानों के लिए,
आयेगा इन्कलाब,जब खडा 'हिन्दुस्तान' होगा !!
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