शनिवार, 4 अगस्त 2012

!! दिखावटीपन की इन्तेहा का दौर है ये !!

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अब  ठहाके लगाना तो छोडिये,हंसना तक मुश्किल हो गया है !तथाकथित 'भद्र' और 'एजुकेटेड' दिखने के लिए लोग बस मंद-मंद मुस्कुरा कर रह जाते हैं !ठहाके लगा कर हंसने से उनका 'स्टेटस' प्रभावित हो जाता है ! इंसान आज ठहाके लगाने की जगह पर भी खुल कर ठहाके नहीं लगा सकता..., और रोने की जगह पर खुल कर रो भी नहीं सकता....!! ठहाक लगाने से उसकी तथाकथित 'गंभीर' और 'चिन्तक' की छवि को 'बट्टा' लग सकता हैऔर रोने से उसकी 'कमजोरी'प्रकट हो सकती है !! 'छींक' और 'जम्हाई' जैसे प्राकृतिक आवेगों पर वो शर्मिंदा होता है, और इस शर्मिंदगी को वो ''सॉरी'' कह कर कम करने की कौशिश करता है !!! 
दिखावटीपन की इन्तेहा का दौर है ये !!!
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